हम ज्यादा 'सहिष्णु' हो गए... Mithilesh hindi poem on tolerance, intolerance

कल वो घर ख़राब हो गया, जहाँ हम जन्मे,
क्योंकि हम ज्यादा बड़े हो गए


कल वो गाँव ख़राब हो गया, जहाँ हम पले,
क्योंकि हम ज्यादा सभ्य हो गए


कल वो शहर ख़राब हो गया, जहाँ हम पढ़े,
क्योंकि हम ज्यादा योग्य हो गए


आज ये देश ख़राब हो गया, जहाँ हम जिए,
क्योंकि हम ज्यादा 'सहिष्णु' हो गए


कल पृथ्वी ख़राब हो जाएगी, मानव का आधार,
क्योंकि हमने ही कचरा फैलाया है


और तब खामोश हो जाएगी, जुबानें हमारीं,
क्योंकि हमारी रूह ही हमें दुत्कार देगी


- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'


Mithilesh hindi poem on tolerance, intolerance

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