जिम्मेवारी - Responsibility, short story in hindi by Mithilesh Anbhigya

उसका परिवार सुखी और समृद्ध था. उस परिवार के वरिष्ठों की सोच एक थी, इसलिए गाँव और रिश्तेदारी में उनकी प्रतिष्ठा की मिसाल दी जाती थी. समय-चक्र में परिवार के बच्चे बड़े हुए. सबसे बड़े बुजुर्ग गाँव पर किसान थे, उनकी दो बेटियां थीं. उन दोनों की शादियां धूम-धाम से सब ने मिलकर कीं. मझले महानुभाव आर्मी से रिटायर थे, उनके बच्चों ने भी पढाई की और प्राइवेट नौकरी में संघर्ष करके आगे बढ़ने की कोशिश करने लगे. उन महानुभाव ने बड़ा ज़ोर लगाया कि उनके बच्चे सरकारी नौकरी में जाएँ, पर उनका बड़ा बेटा रामदयाल सरकारी के नाम से ही चिढ़ता था. वह खुलेआम कहता था कि सरकारी नौकरी में जाने की सोचने वाले 99 फीसदी से ज्यादा लोग कामचोर होते हैं, विशेषकर आज के आधुनिक युग में. इसके अतिरिक्त, सरकारी नौकरी निकलती है 1000 पोस्ट की, और उसके आवेदनकर्ता होते हैं दस लाख से ज्यादा. ऊपर से आरक्षण, घूस, सिफारिश जैसे अंतहीन झमेले. इस बात पर उसकी अपने पिता से लड़ाई हो जाती थी. खैर, उसके दोनों छोटे भाइयों ने भी सरकारी नौकरी का एक फॉर्म तक नहीं भरा और प्राइवेट नौकरियों में ही सेटल हो गए.
परिवार में जैसा होता है, ऐसे समय वही हुआ. परिवार की एकता को नजर लगी और वरिष्ठों में विवाद बढ़ने लगे. तमाम विवादों के बावजूद घर एक बना रहा. सबसे छोटे भाई भी आर्मी से रिटायर होकर बड़े शहर में बस गए. सबसे छोटे भाई का छोटा बेटा राहुल तेज-तर्रार था और ख़ुशी की बात यह थी कि वह भी सरकारी जॉब के चक्कर में नहीं पड़ा, पर राहुल के बड़े भाई सुरेश को उसके किसी शुभचिंतक ने सलाह दे दी कि उत्तर प्रदेश सरकार में अध्यापकों की धमाकेदार भर्ती निकलने वाली है, बस बीएड, टीईटी जैसे कुछ टेस्ट और फिर ज़िन्दगी भर की आराम की नौकरी. अपना घर पर सोये रहो, तो भी तनख्वाह पक्की...
वह शहर में प्राइवेट नौकरी में संघर्ष कर ही रहा था कि उसको यह चस्का लगा. बस फिर क्या था, जाकर गाँव के महाविद्यालय में उसने ज़िद्द करके अपना एडमिशन बीएड में करा लिया और फिर शुरू हुआ अंतहीन तैयारी का सिलसिला...
इलाहाबाद, कानपूर, पटना, मुखर्जी नगर जैसे विभिन्न स्थानों पर सरकारी नौकरी की तैयारी करते युवकों को देखकर बड़ी दया आती है. बिचारे, जनरल नॉलेज रटते रहते हैं. कौन सा ऐसा देश है, जहाँ मच्छर नहीं पाये जाते?
या ऐसी मछली जो पानी नहीं पीती, आदि आदि.. जैसे हज़ारों बेतुके प्रश्न. उसमें से एकाध फीसदी सेलेक्ट भी जाते हैं, बाकी बिचारे या तो गाँव में माँ-बाप के ऊपर बोझ बनते हैं, या राजनीति के अखाड़े में नारेबाजी करते हुए जीवन गुजार देते हैं.
खैर, समय गुजरने के साथ सुरेश के समकक्ष लड़कों की शादियां हो गयीं, बच्चे हो गए और वह स्वाभाविक रूप से डिप्रेशन में आने लगा. पैसे की जरूरत होती ही है, तो वह गाँव पर अपने दोनों ताऊ से झगड़ने लगा और जो परिवार अब तक एक था, उसको तोड़ने के लिए दबाव बनाने लगा.
दो साल, तीन साल, चार साल...
इस बीच शहर में राहुल और सुरेश के पिता ने मकान बना लिया था. वहां पर माँ-बाप के साथ राहुल अकेला रहता था. साथ ही साथ राहुल अपनी जिम्मेवारियां भी उठाता रहा. अपनी कमाई से अपने बड़े भाई सुरेश को वह तैयारी के नाम पर पैसे भेज देता था.
राहुल की अंतरंग मित्र एवं सहकर्मी सोमा को यह सब बातें पता थीं, वह इस बात को कहती नहीं थी, पर लंच टाइम में एक दिन उसने पूछ ही लिया.
राहुल! बड़े भैया, कब तक तैयारी करते रहेंगे ?
ठीक है कि तुम उन्हें कुछ पैसे भेजते हो, पर कब तक! आखिर, उनकी उम्र निकल रही है, और साथ ही साथ प्राइवेट नौकरी में उनके जमने के चांस भी. आखिर, तुम कड़ाई से उनसे बात क्यों नहीं करते? यह उनके ही भविष्य का प्रश्न है, पढ़ने में भी तुमने बताया ही है कि नक़ल से ही वह पास होते रहे हैं, फिर क्यों वह गाँव में टाइम पास...
यदि तैयारी ही करनी है तो शहर में भी कर सकते हैं, यदि चाहें तो कोई छोटी-मोटी जॉब भी... आखिर कोई तो उनसे अपनी जिम्मेवारी समझकर बात करेगा!
राहुल को सोमा की बात अच्छी नहीं लगी, उसने टालते हुए कहा-
मैं अपनी जिम्मेवारी निभा तो रहा हूँ, पैसे भेज देता हूँ और वह हो जायेंगे टीचर! नहीं भी हुए तो गाँव में खेत तो हैं ही, खेती कर लेंगे!
कंधे उचकाते हुए राहुल ने कहा !
राहुल की इस बात से सोमा को झटका लगा. वह तो राहुल को जिम्मेवार समझती थी, पर यह तो...
साहस कर के बोली- राहुल, तुम्हें पता भी है तुम क्या कह रहे हो?
तुम मल्टीनेशनल में अच्छी खासी सेलरी उठाते हो, और वह गाँव में .....
खेती में रखा ही क्या है, तुम नहीं जानते हो?
किसान आत्महत्या कर रहे हैं, लोगों की ज़मीनें बिक रही हैं. तुम अपने सगे भाई के बारे में ऐसा सोचते हो?
और यह भी तो सोचो, उनकी शादी भी नहीं हो पा रही है.
तुम कर लो उनसे 'शादी', इतनी फिकर है तो.
सोमा आँखें फाड़कर राहुल को देखती रह गयी. ...
राहुल उठा, उसने 'जिम्मेवारी' से कैंटीन का बिल चुकाया और अपने केबिन की ओर बढ़ चला.
लंच टाइम खत्म हो चूका था ... !!

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ'

Responsibility, short story in hindi by Mithilesh Anbhigya

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