उस परिवार की खुशियां कभी खत्म नहीं होतीं, जिसमें ऐसे रिश्ते हों...

ram-sita
आधुनिक परिवारों में आपसी संघर्ष बडऩे से रिश्तों की संवेदनाओं और मर्यादाओं का पतन हुआ है। घर की बड़ी महिलाएं बहू और बेटी के रिश्ते में बहुत अंतर रखती हैं। बेटी कर्तव्य के भाव से देखी जाती है और बहू अधिकार के भाव से। यहीं हाल लगभग हर रिश्ते का है, कोई हमसे कितना निकटता से जुड़ा है इसका कोई पैमाना नहीं बचा। रक्त का संबंध भी वैसा नहीं रह गया। परिवार कैसा होना चाहिए, इसके भीतर के सारे रिश्ते कितने संवेदनशील हों, ये रामायण से सीखा जा सकता है। ये कथा परिवार की कथा है। परिवार के ऊंचे सिद्धांतों और आदर्शों की कथा है। एक संवेदनशील प्रसंग में चलते हैं, जहां पारिवारिक मूल्यों की शिक्षा मिलती है। श्रीरामजी को वनवास जाना था। वे चाहते थे सीताजी माँ कौशल्या के पास रुक जाएं। सीताजी उनके साथ जाना चाहती थीं। कौशल्याजी भी चाहती थीं सीता न जाए। सास, बहू और बेटा, ऐसा त्रिकोण यहां पैदा हो गया था। दुनिया में इस रिश्ते ने कई घर बना दिए और बिगाड़ दिए। लेकिन रामजी के धैर्य, सीताजी की समझ और कौशल्याजी की समझ ने रघुवंश का इतिहास बदल दिया। हमारे अवतारों की यह घटनाएं हमें अपने जीवन की छोटी-छोटी बातों में बड़े-बड़े संदेश दे जाती हैं। हमारे परिवारों में सास-बहू पति-पत्नी के संबंधों में जो विच्छेदन आता है उसका बड़ा मनोवैज्ञानिक संकेत है। जब कोई किसी परिवार में किसी पर निर्भर होता है तो परिवार के सदस्य को लगता है कि हम उसकी जरूरत पूरी कर रहे हैं। माँ-बाप बच्चों को जब बड़ा करते हैं तो वे इसलिए प्रसन्न रहते हैं कि बच्चे उन पर निर्भर हैं। जैसे ही बच्चे बड़े हो जाते हैं तो वे अपना काम खुद करने लगते हैं। उनका अपना संसार बस जाता है, अब वो माँ-बाप पर निर्भर नहीं हैं। तब एक मनोवैज्ञानिक भीतरी अन्त:विरोध शुरू होता है। सास-बहू के झगड़े का एक कारण यह भी होता है कि सास सोचती है कि इस बेटे को जो सदा से मेरे ऊपर निर्भर था, मुझे उसे बुद्धिमान बनाने में 25 साल लगे और इस नई औरत ने पांच मिनट में उसको बुद्धू बना दिया। जो बेटा सदा से मुझ पर निर्भर था वह आज इस पर निर्भर हो गया। यही हाल पति-पत्नी के होते हैं। वह भी एक-दूसरे को एक-दूसरे पर निर्भर करना चाहते हैं। दाम्पत्य का आधार प्रेम होना चाहिए। हम पहले भी यह बात कर चुके हैं कि जिस परिवार के केन्द्र में प्रेम होगा वह परिवार फिर अहंकाररहित होगा उसमें बड़ा-छोटा, तेरा-मेरा नहीं होता और इसलिए विरोध की संभावना समाप्त हो जाती है।

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