कब परिवार बिखराव और विनाश के रास्ते पर चल देता है?

confucion
सभ्य समाज की नींव सभ्य परिवार से पड़ती है। संस्कारों का प्रवाह परिवार से समाज की ओर जितनी तेजी से जाता है, उतनी ही गति से समजा से परिवार की ओर आता भी है। संस्कारों का प्रवाह ही परंपराओं जीवन प्रदान करता है। अगर परिवार से गलत परंपराओं की शुरुआत हो जाए तो समाज भी उससे अछूता नहीं रहेगा। हम जब भी परिवार में किसी नवाचार का स्वागत करें तो पहले ये भी विचार करें कि इससे समाज की भावी पीडिय़ों को क्या लाभ या हानि होगी। बिना किसी विचार के किसी भी नई परंपरा को परिवार में प्रवेश ना दें। समाज जहां एक तरफ संस्कृ ति और परंपराओं की रक्षा करता है, वहीं समय के साथ-साथ मानवीय आचरण में आ रहे परिवर्तन को भी नियंत्रित करता है। समय के साथ ही जिन आदर्शों और मर्यादाओं में बदलाव और परिवर्तन आ रहा है, उसकी खोज-खबर रखना भी समाज का ही कार्यक्षेत्र है। यदि आदर्शों और मर्यादाओं के गिरते स्तर के प्रति कठोर प्रतिक्रिया नहीं होती तो लोगों का चरित्र गिरने लगता है यानि कि वे और भी अधिक उद्दण्ड और मनमौजी हो जाते हैं। लेकि न ध्यान रखने की बात यह है कि समाज कोई व्यक्ति नहीं है जिसे किसी बात के लिये इनाम या सजा दी जा सके। महाभारत में देखिए कौरवों का परिवार, वहां संस्कारों की लगभग अनदेखी ही हो गई। सत्ता और पुत्र प्रेेम के मोह में धूतराष्ट्र ने संस्कारों की ओर कभी ध्यान नहीं दिया। मद में चूर दुर्योधन ने भी संस्कारों और मर्यादाओं का उल्लघंन करना शुरू कर दिया। पिता पुत्र प्रेम में दृष्टिहीन था, पुत्र सत्ता के मद में अंधा। अपने ही भाइयों को दुर्योधन ने पिता के नाम से जुआ खेलने के लिए आमंत्रित किया, धृतराष्ट्र कुछ नहीं बोले। द्रौपदी को भरी सभा में निर्वस्त्र करने का प्रयास किया तो भी कौरव परिवार के सारे लोग चुप रहे। परिवार में सभ्यता और संस्कृति दोनों का ही नाश हो गया। यह दरअसल सिर्फ इसलिए हुआ कि दुर्योधन को अनुचित अधिकार और प्रेम मिलने लगा। धृतराष्ट्र ने राजा होते हुए भी पुत्रमोह की परंपरा को परिवार में प्रवेश दे दिया। एक गलत परंपरा को घर में लाते ही पूरा कौरव परिवार नष्ट हो गया।

Post a Comment

Previous Post Next Post