देश के सुविख्यात लेखक, माननीय विनोद बब्बर जी के सरकार पर लिखे गए भ्रष्टाचार- सम्वन्धी लेख पर 'मिथिलेश की प्रतिक्रिया'


समाधान क्या है भाई साहब ?? ... एक हमारे डॉ. साहब प्रधानमंत्री है, वह गोल- मोल जवाब देकर जनता को व्यस्त रखते है. चलिए हम मन लेते है कि उन डॉ. साहब के पास देश की समस्याओं का ईलाज नहीं है. पर आप लोग तो जनता की नब्ज पकड़ते हैं न ?? क्या इन सारी समस्याओं का कारण हम खुद ही नहीं है ? क्या इन सब समस्याओं के मूल में हमारी पारिवारिक व्यवस्था का टूटना नहीं हैं ?? ... 

आश्चर्य इस बात पर होता है कि आप जैसे स्पष्टवादी और निष्ठुर (डॉ. अधिकांशतः निष्ठुर होते हैं) समाजशाश्त्री भी इसका ईलाज जानते हुए भी इस से परहेज करते हैं. क्या हमारे महापुरुषों मर्यादा पुरुषोत्तम राम, कृष्ण, युधिष्ठिर, गुरु नानक, अब्दुल कलाम इत्यादी महापुरुषों की महानता शुन्य में उपजी हुई है ?? मर्यादाएं शुन्य में उत्पन्न नहीं हो सकती भाई साहब, यह सत्य है, और जब तक हम व्यक्ति की प्रथम इकाई को शुद्ध नहीं करते है, तब तक देश में, समाज में इन सारी बुराइयों पर हमें अपना गला फाड़ कर संतोष करना ही पड़ेगा, जो कि मेरे जैसे यथार्थवादी के लिए पूरा व्यर्थ नहीं तो व्यर्थ के बहुत नजदीक है.. आप के साथ कई गोष्ठियों में मैंने सुना है साधन- शुद्धि की बात. और आप इसके जोरदार समर्थक भी है, और यह बात सच भी है. पर क्या व्यक्ति-निर्माण जैसे महत्वपूर्ण उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हमारा प्रथम साधन शुद्ध है ?? ..... 

मै आपके विचारोतेज्जक लेख के लिए आपको बधाई देता हूँ, पर आप जैसे युगपुरुषों से समाज को इससे कहीं अधिक उम्मीद है. हमारे जैसे तमाम लोग, जो जड़ तक पहुंचना चाहते है, आप के साहित्य के माध्यम से मार्गदर्शन चाहते है, जिसमे जड़ की बात हो !! जिसमे मूल- तत्व हो सामाजिक आधार का. हम जैसे लोगों को फर्क नहीं पड़ता केजरीवाल जैसे लोगों से, जो इसी जनम में सब कुछ पा लेना चाहते है और अनाप-शनाप रास्ते का चयन करते है ?? हम तो बस दिया जलाना चाहते है, मशाल शायद वह हमारे बाद हो. हमें अपनी भारतीय परंपरा से यह तो पता चल गया है कि दिया जलाना कहा हैं, वह निश्चित रूप से परिवार ही है. पर कैसे जलाना है, आप हमें रास्ता दिखायेंगे. .... 

अच्छे लेख के लिए आपको साधूवाद के साथ एक सारगर्भित ग्रन्थ की प्रतीक्षा में, जिससे हमारा मूल सुधर सके. 
आपका - मिथिलेश.

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